
Masrur Temples: कांग’ड़ा घाटी अपनी प्राकृ’तिक सुंदरता, वानस्प’तिक विवि’धता, पुरात’नता, ऐतिहा’सिक धरो’हरों आदि से सबको आक’र्षित करती रही है। त्रिग’र्त, नगर’कोट आदि के नाम से विख्या’त कांग’ड़ा नगर की स्थापना राजा भूमि’चन्द्र ने की थी, जिन’की 236वीं पीढ़ी के राजा सु’शर्म चन्द्र ने महा’भारत युद्ध में कौ’रवों का साथ दिया था। यह ऐतिहा’सिक नगर विकास और विध्वंस के अनेक दृ’श्यों का साक्षी रहा है। यहां के राजा हरि’चन्द जब एक बार सूखे कुएं में गिर गए और कई दिनों तक रा’ज्य में वापस नहीं पहुंचे तो उनके छोटे भाई को राजा बना दिया गया।

बाद में किसी ने रा’जा को निकाला परन्तु जब राजा को सारे घटना’क्रम का पता चला तो उन्होंने नया नगर बसाया, जिसे हरि’पुर के नाम से जाना जाने लगा। हरि’पुर की रानी तारा की कथा देवी मां के जागरण में सबसे महत्व’पूर्ण मानी जाती है। यहां आज भी पुराना किला और बहुत से ऐतिहा’सिक मन्दिर, ताला’ब आदि मौजूद हैं।

कुछ दिन पूर्व जब हरि’पुर के स्था’नीय युवा बाण’गंगा नदी (बनेर खड्ड) के किनारे सफाई कर रहे थे तो उन्हें यहां चट्टान को तराश कर बनाई गई एक संर’चना मिली। यह एक मकान’नुमा ढांचा है, जिसमें लगभग 20 फुट लम्बा बरा’मदा और अंदर की ओर 3 कमरे बने हैं। इसके ऊपर एक और खुला कक्ष है। बरा’मदे के ऊपर छोटे-छोटे छेद बनाए गए हैं, जो इस ढांचे की सुंद’रता को और निखारते हैं। बरा’मदे की दीवारों पर नक्का’शी की गई है। कहीं फूल’दान, कहीं नर्तकी, कहीं खिड़कियों के डिजाइन उकेरे गए हैं। कमरों के प्रवेश द्वारों के ऊपर कुछ अस्प’ष्ट से शब्द अंकित हैं। बरा’मदे के फर्श पर चौसर आदि खेलने के लिए चि’ह्न बनाए गए हैं तथा कुछ रेखाएं खींची गई हैं।

स्था’नीय निवासी बताते हैं कि इस स्थान की खोज वास्तव में आ’श्चर्य से कम नहीं थी। जब युवा साथी यहां से झा’ड़िया काटने लगे तो चट्टान के साथ कुछ गु’फा जैसे ढांचे का आभास हुआ। फिर धीरे-धीरे साव’धानी से मिट्टी हटाने का कार्य किया गया।

स्था’नीय लोगों के अनुसार कार्य कठिन और चुनौती भरा था। मिट्टी हटाते समय किसी जान’वर, जैसे अजगर आदि के जान’लेवा हमले की भी आशं’का थी, परन्तु युवा मित्र जो’श तथा होश के साथ योजना’बद्ध ढंग से कार्य करते रहे। कुछ ही समय के उप’रांत एक मकान के बरामदे जैसी संर’चना सामने थी। सबकी आंखें खुशी से चमक उठीं। अगले चरण में थोड़ा और अंदर जाकर कमरा ढूंढा गया।

इसी प्रकार दो और कमरे बरामदे के दोनों ओर भी मिले। मि’ट्टी जब पूरी तरह हटा दी गई तो च’ट्टान के अं’दर बने इस भवन का रूप और भी अधिक निखर आया। दीवारों की नक्का’शी और चित्र स्प’ष्ट हुए।

दी’वार पर चित्रि’त एक फूल’दान के चटक रंग को देख कर लगता है जैसे अभी कुछ ही दिन पूर्व इसे बना’या गया हो। इतनी सफा’ई से भवन को तरा’शा गया है कि लगता ही नहीं कि यह एक चट्टान के अंदर है। छत एक’दम सपाट समतल है। बहुत से डिजा’इन भी कारी’गरी की अनूठी मिसाल हैं।

यहां से मात्र 20 किलो’मीटर की दूरी पर प्रसि’द्ध मस’रूर मन्दिर है, जो वा’स्तव में एक ही च’ट्टान को काट’कर बनाए गए चौ’दह मंदि’रों का समूह है और उत्तर भारत में अपनी तरह का अकेला ऐसा म’न्दिर है। हरि’पुर की यह संर’चना भी उसी प्रकार चट्टान को अन्दर से तरा’शकर बनाई गई है। सड़क के नज’दीक होने के कारण इस चट्टान तक पहुं’चना बहुत सरल है। यदि इस संर’चना पर शोध किया जाए तो अव’श्य ही इति’हास का कोई नया पक्ष सामने आएगा। इसके साथ ही कांग’ड़ा का यह दूसरा मस’रूर पर्यटन के मान’चित्र पर भी अंकि’त किया जा सकेगा।